मक्सिम गोर्की का उपन्यास “मां” रूस में 1905 की क्रांति के समय की कहानी है। यह उपन्यास एक मजदूर वर्ग के परिवार के संघर्षों और जागरूकता की यात्रा को दर्शाता है। मुख्य पात्र, पेलागेय निलोवना व्लासोवा, एक मजदूर की पत्नी है जो अपने बेटे, पावेल, के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित होती है। पावेल अपने साथी मजदूरों के साथ मिलकर समाजवाद और श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करता है। पेलागेय, जो शुरू में केवल एक साधारण गृहिणी थी, धीरे-धीरे अपने बेटे के विचारों को समझने लगती है और उसकी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर देती है।
उपन्यास में, गोर्की ने मजदूर वर्ग की पीड़ा, उनके संघर्षों और उनकी आकांक्षाओं को गहराई से उभारा है। पेलागेय का चरित्र इस बदलाव और जागरूकता का प्रतीक है जो एक साधारण व्यक्ति के अंदर क्रांति के विचारों से आ सकता है। उपन्यास न केवल एक व्यक्तिगत कहानी है बल्कि यह समाज में बड़े परिवर्तन की आवश्यकता और उसके लिए आम जनता की भागीदारी का एक शक्तिशाली संदेश भी देता है। “माँ” का अंत पेलागेय की गिरफ्तारी के साथ होता है, जो यह दर्शाता है कि क्रांतिकारी संघर्ष व्यक्तिगत बलिदान की मांग करता है, लेकिन इससे समाज में व्यापक जागरूकता और परिवर्तन की नींव भी रखी जाती है।
अनुवादक मुनीश सक्सेना
डिजाइनर ब. इल्यूश्चेन्को
