लोहे की अंगूठी क. पौस्तोवस्की की एक संवेदनशील और भावनात्मक कहानी है, जो मानवीय करुणा, स्मृति और छोटे-छोटे कार्यों के गहरे प्रभाव को दर्शाती है।
यह कहानी एक डॉक्टर के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे एक दूरस्थ गाँव में नियुक्त किया गया है। एक तूफ़ानी रात को एक छोटी बच्ची उसकी माँ के इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाने आती है। डॉक्टर बच्ची की निष्ठा और माँ-बेटी के प्रेम से बहुत प्रभावित होता है। वह महिला का इलाज कर वापस चला जाता है और समय के साथ यह घटना भूल जाता है। कई साल बाद, जब वह खुद बीमार होता है, तो उसे एक पत्र और एक छोटी सी लोहे की अंगूठी मिलती है — वही बच्ची, अब एक युवा महिला बन चुकी है, जिसने डॉक्टर द्वारा दी गई उस अंगूठी को अब तक सहेज कर रखा है। यह अंगूठी, जो कभी एक खिलौने के रूप में दी गई थी, अब गहरे मानवीय जुड़ाव और आभार का प्रतीक बन जाती है।
कहानी ग्रामीण जीवन की सादगी, मानव संवेदना और दयालुता के स्थायी प्रभाव को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। पौस्तोवस्की की भाषा सरल है, लेकिन भावों से परिपूर्ण, जो पाठक के मन में गहराई तक उतरती है।
अनुवादकः योगेन्द्र कुमार नागपाल
चित्रकार: त० येर्योमिना
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