इस पोस्ट में, जहाँ चाह वहाँ राह उॹबेक लोक कथाएं हम यह पुस्तक देखेंगे ।
इस पुस्तक के बारे में
प्रसतुत लोक-कथाओं में उॹबेक लोगों के चरित्र, उनके रहन-सहन, रिती-रिवाॹो, भावनाओं और आकांक्षाओ की झलक मिलती है। इन काहानियों में बुराइयों पर व्यंग किया गया है।
पुस्तक का अनुवाद रूसी से किया गया था और इसके चित्रकार थे ।
सभी श्रेय गुप्तजी को ।
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