इस पोस्ट में, हम लेव लदांऊ व युरी रुमेर द्वारा लिखित सापेक्षिकता सिद्धांत क्या है? यह पुस्तक देखेंगे
इस पुस्तक के बारे में
अल्बर्ट आईंस्टाइन द्वारा सापेक्षिकता सिद्धांत का प्रतिपादन हुए अस्सी से ज्यादा वर्ष बीत चुके हैं। विगत अवधि में यह सिद्धांत, जो आरंभतः मात्र एक अंतर्विरोधी बौद्धिक खेल प्रतीत होता था, भौतिकी के एक आधार-स्तंभ में परिणत हो चुका है। बिना इस सिद्धांत के आधुनिक भौतिकी लगभग उसी तरह असंभव है, जैसे बिना अणु-परमाणु की अवधारणाओं के । अनगिनत भौतिकीय संवृत्तियां हैं जिनकी व्याख्या सापेक्षिकता सिद्धांत के बिना असंभव है। इसके आधार पर प्राथमिक” कणिकाओं के त्वरित्र जैसे जटिल उपकरण बन रहे हैं, नाभिकीय प्रतिक्रियाओं से संबंधित कलन संपन्न होते हैं आदि आदि ।यह खेद की बात है कि सापेक्षिकता सिद्धांत से विशेषज्ञों को छोड़ कर अन्य साधारण लोग बहुत कम परिचित हैं। इसकी गणना क्लिष्ट ” सिद्धांतों में होती है और यह सही भी है। सामान्य व्यक्ति से, जो भौतिकविद् नहीं है, इसके जटिल गणितीय उपकरण को व्यवहार में लाने की अपेक्षा नहीं की जा सकती । फिर भी हमारी मान्यता है कि सापेक्षिकता सिद्धांत की मुख्य अवधारणाएं और उसके मुख्य विचारअविशेषज्ञों के लिये सुलभ शैली में व्यक्त किये जा सकते हैं।हमें आशा है कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पाठक फिर कभी इस तरह नहीं सोचेगा : सापेक्षिकता सिद्धांत का अर्थ इतना ही है कि ” दुनिया में सब कुछ सापेक्षिक है ” । उल्टा, वह देखेगा कि भौतिकी के किसी भी अन्य सही सिद्धांत की भाँति यह सिद्धांत भी वस्तुगत सत्य को व्यक्त करता है, जो किसी की भी इच्छा या रुचि पर निर्भर नहीं करता । व्योम, काल और द्रव्यमान की पुरानी अवधारणाओं को त्याग कर हम और गहराई से समझने लगे हैं कि दुनिया वास्तविकता में कैसे बनी है ।
पुस्तक का अनुवाद रूसी से कवंर सिंह दव्ऱा किया गया।
यह पुस्तक मीर प्रकाशकों द्वारा साल १९८८ प्रकाशित की गई थी ।
आप किताब यहाँ प्राप्त कर सकते हैं.
मूल स्कैन के लिए धन्यवाद सत्यनारायण हुड्डा / डॉ॰ बुद्धदेव विभाकर
इंटरनेट आर्काइव पर हमें फॉलो करें: https://archive.org/details/@mirtitles
ट्विटर पर हमें फॉलो करें: https://twitter.com/MirTitles
हमें लिखें: mirtitles@gmail.com
गिटलैब में हमें फॉलो करें: https://gitlab.com/mirtitles/
यहां विस्तृत पुस्तक सूची में नई प्रविष्टियां जोड़ें ।